कोरोना संक्रमण: अदालतों में लंबित मुकदमों का बोझ
प्रयागराज। कोरोना ने अदालतों की कार्रवाई पर भी ब्रेक लगा दिया है। न्यायालयों में पहले से ही लंबित मामले अधिक थे और अब कोरोना की वजह से ऐसा बोझ बढ़ा है कि इससे उबरने में काफी समय लग सकता है। कोरोना की वजह से 22 मार्च से जिला अदालत बंद हो गई थी। आठ मई को खुली तो महज 18 दिन तक ही चली और 25 मई से फिर न्यायालयों के दरवाजों पर ताले लटक गए। कोर्ट खुलने के बाद नए मुकदमे दाखिल होंगे, जिस कारण परेशानी और बढ़ेगी।
हालांकि 18 दिन तक जब कोर्ट खुली तो वर्जुअल कोर्ट के माध्यम से सुनवाई हुई। इसमें सिर्फ जमानत प्रार्थना पत्रों को जिला जज, विशेष न्यायाधीश एससी, एसटी एक्ट, पास्को एक्ट और सीजेएम द्वारा सुना गया। इस दौरान कई आर्डर भी हुए। इसमें सिर्फ दोनों पक्षों के अधिवक्ता ही शामिल हुए। बोलने के लिए तय समयसीमा भी निर्धारित की गई थी। पीडि़त पक्ष इससे दूर था। अगर उसकी जमानत अर्जी खारिज हो जाती तो वह अपने अधिवक्ता को यह कहने में नहीं चूकता कि वह ठीक से अपनी बात कोर्ट के सामने नहीं रख सके। इस वजह से फीस भी मुश्किल से मिलती है। ऑनलाइन सुनवाई में यह भी परेशानी है कि अगर प्रार्थना पत्र में थोड़ी भी गड़बड़ी होती है तो उस पर सुनवाई नहीं होती। दोबारा ऑनलाइन प्रार्थना पत्र देना पड़ता है, जिसका खर्च पीडि़त पक्ष फिर से वहन करता है।