पाकिस्तान में कैद भारतीय सैनिकों की रिहाई का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

नई दिल्ली। 1971 की लड़ाई के बाद से पाकिस्तान में बंद भारतीय सैनिकों की लिस्ट मांगने और उन्हें वापस लाने के लिए कदम उठाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता ने 1999 में पाकिस्तान की क्रूरता का शिकार हुए कैप्टन सौरभ कालिया समेत 6 सैनिकों की हत्या की जांच की भी मांग की है। कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह याचिका में कही गई बातों पर 3 हफ्ते में अपना रुख बताए। 1971 में पाकिस्तान में युद्धबंदी बने मेजर कंवलजीत सिंह के साथ पूर्व सैनिक बीर बहादुर सिंह ने यह याचिका दाखिल की है। याचिका में बताया गया है कि युद्ध के बाद यह बात सामने आई थी कि पाकिस्तान 54 भारतीय युद्धबंदियों को भारत भेजेगा। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। बीच-बीच में यह सुना जाता रहा कि पाकिस्तानी जेल में इन सैनिकों को बहुत यातनापूर्ण परिस्थितियों में रखा गया है। लेकिन भारत सरकार और सेना ने कभी भी इन लोगों की रिहाई के लिए उचित प्रयास नहीं किए । याचिका में 1999 में 4 जाट रेजिमेंट के कैप्टन सौरभ कालिया और 5 सिपाहियों को पाकिस्तान की तरफ से बंदी बनाए जाने और बहुत यातना देकर उनकी हत्या की जांच की भी मांग की है। कारगिल युध्द से पहले मई 1999 में लद्दाख से सटे लाइन ऑफ कंट्रोल में गश्त कर रहे इन 6 सैनिकों को घुसपैठिए पाकिस्तानी सैनिकों ने कैदी बना लिया था। उन्हें बहुत तकलीफ देकर जान से मारा गया। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि पाकिस्तानी सेना के नायक गुले खानदान ने सार्वजनिक कार्यक्रम में भारतीय सैनिकों के साथ की गई क्रूरता के बारे में बताया है। भारत सरकार ने मामले की जांच और कार्रवाई के लिए ठोस प्रयास नहीं किए।याचिकाकर्ता ने मांग की है कि कोर्ट भारत सरकार को अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस से पाकिस्तान में बंद भारतीय सैनिकों की लिस्ट देने को कहे और उसके आधार पर कार्रवाई करे। याचिका में रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और सेना प्रमुख को प्रतिवादी बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और सूर्य कांत की बेंच ने याचिका में कही गई बातों महत्वपूर्ण माना। जजों ने केंद्र को 3 हफ्ते में मामले पर अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। गौरतलब है कि कैप्टन सौरभ कालिया के पिता ने भी 2012 में इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। लेकिन उसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।

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