रूस के आगे सरेंडर करेंगे यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की!
नई दिल्ली । रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग अब एक निर्णायक मुकाम पर आती दिखाई दे रही है। रूस की सेना तेजी से कीव में आगे बढ़ रही है। रूस ने ये भी साफ कर दिया है कि उसका मकसद अब कीव पर नियंत्रण करना और मौजूदा सरकार को हटाना है। वहीं रूस ने दूसरे देशों को भी स्पष्ट शब्दों में इस मामले में रुकावट न बनने की चेतावनी दी है। हालांकि यूक्रेन इस विवाद में पहले ही खुद को अकेला बता चुका है। एक बयान में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर जेलेंस्की ने कहा है कि उन्हें विश्व ने अकेला छोड़ दिया है। जानकार मानते हैं कि यूक्रेन पर रूस के कब्जे के बेहद खास मायने हैं। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर संजय पांडे का कहना कीव को रूस द्वारा अपने नियंत्रण में लेने का अर्थ यूक्रेन पर कब्जा करने जैसा ही होगा। उनका ये भी कहना है कि कीव रूस की पहचान से जुड़ा है, जिसको वो कभी भी छोड़ना या फिर अपने से अलग नहीं करना चाहता है। रूस कीव को अपना स्प्रीच्वल सेंटर मानता है। अपने एक आर्टिकल में राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन को रूस से जोड़ते हुए लिखा है उनका इसके साथ नैसर्गिक, सांस्कृतिक रिश्ता है।हालांकि दो दिन पहले ही उन्होंने अपने बयान में कहा था कि यूक्रेन का कभी कोई स्वतंत्र असतित्व रहा ही नहीं है। न ही वो कभी स्वतंत्र राज्य था। इससे ये भी स्पष्ट होता है कि वो आने वाले समय में यूक्रेन को एक आजाद राष्ट्र की मान्यता भी नहीं देने वाले हैं। कीव या यूक्रेन पर नियंत्रण रूस के लिए अब एक साख का प्रश्न भी बन चुका है। बता दें कि रूस ने बेहद स्पष्ट शब्दों में यूक्रेन से सरेंडर करने को कहा है। इस संबंध में किए गए एक सवाल के जवाब में प्रोफेसर पांडे ने कहा कि जेलेंस्की रूस से वार्ता करने को सरेंडर करना कभी नहीं कहेंगे। इसको दूसरा ही नाम दिया जाएगा। हालांकि जेलेंस्की ये भी कह चुके हैं कि वो रूस का डटकर मुकाबला करेंगे और देश भी नहीं छोड़ेंगे। जेलेंस्की की पुतिन को की गई फोन काल के बारे में पूछे एक सवाल के जवाब में प्रोफेसर पांड ने कहा कि उन्हें इस बात का आभास हो गया होगा कि रूस की मंशा क्या है। उन्हें इस बात का भी पता चल गया होगा कि रूस अब पीछे नहीं हटेगा, इसलिए ही उन्होंने फोन करने का निर्णय लिया। इसके पीछे एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि उनके यहां से ही ये बात उठ रही थी कि वो इस संबंध में अमेरिका समेत दूसरे पश्चिमी देशों से बात कर रहे हैं लेकिन रूस से सीधे कोई बात नहीं कर रहे हैं, जहां से शायद उन्हें राहत मिल जाए। मुमकिन है कि इस पर विचार करने के बाद उन्होंने ऐसा किया हो। हालांकि प्रोफेसर पांडे का ये भी कहना है कि मोल-भाव का समय फिलहाल निकल गया है।