स्मारक घोटाले में जांच की रफ्तार धीमी, न आरोपित पकड़े गए न गबन के दस करोड़ रुपये
लखनऊ । स्मारक, संग्रहालयों, संस्थाओं, पार्कों व उपवनों का गबन हुआ दस करोड़ रुपये पुलिस चार माह बाद भी वापस नहीं ला सकी। लाचार पुलिस बैंक आफ बड़ौदा के उस अधिकारी को भी नहीं पकड़ सकी, जिसने गबन में अहम भूमिका निभाई थी। यह स्थिति राजधानी की हाइटेक पुलिस की है। तिरपन सौ कर्मियों के सेंट्रल प्रोविडेंट फंड (सीपीएफ) का पैसा बैंक ऑफ बडौदा की शाखा से दूसरे बैंक में चला जाता है और फिर तीसरे व चौथे बैंक से निकल जाता है।पवन कुमार गंगवार, लविप्रा सचिव व मुख्य प्रबंधक स्मारकों संग्रहालयों संस्थाओं द्वारा गोमती नगर थाने में मामला भी दर्ज कराया जाता है, लेकिन बेबस पुलिस सिर्फ चार माह से जांच ही कर रही है। वहीं बैंक प्रशासन हर माह पैसा वापस करने को लेकर आश्वासन की घुट्टी पिला रहा है। एक बार फिर 31 जनवरी 2022 की तिथि निर्धारित की है और कहा गया है कि एफडी जो बैंक की लापरवाही से गायब हुई हैं, उसे वापस किया जाएगा। बता दें कि स्मारक की आज भी 38 करोड़ की एफडी इसी बैंक में हैं।स्मारकों में काम करने वाले तिरपन सौ कर्मियों की गाढ़ी कमाई का पैसा बैंक ऑफ बडौदा में मार्च 2021 में एफडी कराने के लिये दिया गया था। करीब 48 करोड़ रुपये की एफडी बननी थी। मुख्य प्रबंधक पवन कुमार गंगवार के मुताबिक दो-दो करोड़ की 24 एफडी बनानी थी। शाखा प्रबंधक नागेंद्र पाल ने कूटरचित तरीके से कृष्ण मोहन श्रीवास्तव व मुख्य प्रबंधक के फर्जी हस्ताक्षरों का खेल करके यह पूरा खेल कर दिया। प्रारंभिक जांच में सामने आया था कि अप्रैल के दूसरे सप्ताह में नोएडा की एक निजी बैंक शाखा में 38 करोड़ रुपये स्थानांतरित किए जाते हैं और फिर कुछ दिन बाद दस करोड़ छोड़ सारा पैसा वापस आ जाता है।उधर, बैंक प्रबंधक अधिकांश एफडी दे देता है स्मारक प्रशासन को, लेकिन दस करोड़ की एफडी नहीं मिलती है। मामला मुख्य प्रबंधक व सदस्य स्मारक समिति के पास जाता है तो हड़कंप मच जाता है। आनन फानन में मामला दर्ज किया जाता है और प्रबंधक वित्त देवेंद्र मणि उपाध्याय को पूरे मामले को छिपाए रखने के कारण निलंबित कर दिया जाता है। जो आज भी निलंबित चल रहे हैं।