अयोध्या में राममंदिर का पाँच सौ वर्षों का विवाद 40 दिनों में ख़त्म
उन्नाव,संतोष तिवारी । अयोध्या में राममंदिर का आंदोलन एक ऐस आंदोलन रहा जिसे देखकर देश के बच्चे युवा हो गए तो कुछ बुजुर्ग मन में इसके निर्माण काा सपना लिए दुनिया से ही बिदा हो गए। धार्मिक और राजनीतिक इतिहास के सबसे बड़े विवाद का यदि आज अंतिम दिन कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। पांच सौ वर्षो तक चले लम्बे संघर्ष के बाद देश की सबसे बड़ी अदालत ने पिछले साल इसका फैसला किया तो उस फैसले को मूर्तरूप देने का काम आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया।
निराशा का था भाव, साधु संतो का विश्वास डगमगा चुका था
यह एक ऐसा जटिल मामला था जिसमें सात पक्षों की अलग अलग दलीलों पर फैसला लेना बेहद चुनौतीपूर्ण कदम था। जहां हिन्दू पक्ष की तरफ से रामलला विराजमान, गोपाल सिंह विशारद, निर्मोही अखाडा, निर्वाणी अखाड़ा, रामजन्म पुनरूद्वार समिति की अपनी दलीलें रहीं वहीं मुस्लिम पक्ष की तरफ से शिया वक्फ बोर्ड, और सुन्नी वक्फ बोर्ड पक्षकार थें। वर्षो पुराने इस मुकदमें को लेकर देश में निराशा का भाव बन चुका था। साधु सतों का विश्वास डगमगाने लगा था, साधु संतो के साथ भारतीय समाज मे भी निराशा का भाव पनपने लगा था। इसके अलावा सरकारों के प्रति नाराजगी बढ चुकी थी।
अयोध्या में कई बार हुआ साधु संतो और रामभक्तो का जमावडा
इसी कारण अयोध्या में कई बार जमावडा हुआ और अदालत और सरकारों को चुनौती दी जाने लगी थी। पर सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से मात्र 40 दिनों दस्तावेजों के आधार पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया उसके बाद से देश की निगाहें अब फैसले के इंतजार में हैं। राम मंदिर मामले ने 1984 में उस समय तेजी पकड़ी जब विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।
देश में कई बार आगजनी और हिंसा हुई
विहिप ने इसके लिए एक समिति का गठन किया गया। वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवादित स्थल का ताला खुलवा दिया। एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश कृष्ण मोहन पाण्डे ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी। इस घटना के बाद नाराज मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। तब मो.हाशिम ने इस निर्णय के विरुद्ध अपील दायर की तथा बाद मुस्लिम समाज ने कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करते हुए काला दिवस मनाया। कई जगह आगजनी व हिंसा हुई। इसका राजनीतिक परिणाम यह रहा मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो गया और 1989 के चुनाव में कांग्रेस प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो गयी।
कब क्या हुआ?
23 दिसम्बर 1949.-अयोध्या में रामलला की मूर्ति प्रस्फुटित हुई जिसे रामजन्म भूमि कहा गया
29 दिसम्बर 1949 -उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को सूचित कर तत्कालीन जिलाधिकारी कृष्ण कुमार अय्यर ने उस क्षेत्र को विवादास्पद घोषित कर धारा 144 लगा दी।
5 जनवरी 1950 -फैजाबाद सह अयोध्या के अतिरिक्त नगर मजिस्ट्रेट ने विवादास्पद स्थल का निरीक्षण किया और उसमें प्रवेश की आज्ञा का विनियमयन किया।
16 जनवरी 1950-सिविल जज ने एक अस्थायी निषेधाज्ञा जारी करके मूर्तियां हटाने पर रोक लगा दी।
3 मार्च 1951 -मुसलमानों ने निषेधाज्ञा आदेश के उल्लधंन विरूद्व अपील की। जिस पर दंगे हुए और 75 निर्दोष लोग मारे गए।
1961-केन्द्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक अपील दायर की। जिसमें मूर्तियों को हटाने और मस्जिद सौंपने की बात कही गयी।
1964 – कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना की गयी।
3 मार्च 1983 – तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी को समस्या के समाधान के लिए लिखा गया पत्र।
6 मार्च 1983 – मुजफ्फरनगर में विराट हिन्दू सम्मेलन में काशी मथुरा और अयोध्या हिन्दुओं को सौंपने की मांग की गयी।
7-9 अप्रैल 1984 को दिल्ली में पहली धर्म संसद जिसमें तीनों धर्मस्थलों को मुक्त करने की मांग गयी।
1985 -विजयादशमी से रामजानकी रथ यात्राएं शुरू हुई।
एक फरवरी 1986 -विवादित स्थल का अदालत के आदेश पर ताला खोला गया।
1989 -विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित क्षेत्र के पास राममंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास किया।
1990 – श्री राम मंदिर आंदोलन ने गति पकडी। कारसवेक अयोध्या पहुंचे। 30 अक्टूबर और 2 नवम्बर पर पुलिस से टकराव। गोली चली। हजारों कारसेवक अपने प्राणों की आहुति दी मारे गए।
6 दिसम्बर 1992-कारसेवकों ने आहवान किया और अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचा को ढहा दिया। देश में कई जगह दंगे हुए। मुम्बई में सबसे अधिक हिंसा हुई।
3 अप्रैल 2000-इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर एएसआई को उत्तखनन का निर्देश दिया।
जनवरी 2002-तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया।
20 अप्रैल 2006- यूपीए सरकार ने निब्राहन आयोग के समक्ष आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद ढहाई गयी।
20 जून 2009 -लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी।
30 सितम्बर 2010- इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला- विवादित स्थान को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए।
6 अगस्त 2019 – मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुइ और 16 अक्टूबर 2019 को फैसला सुरक्षित।
9 नवम्बर 2019 -40 दिनों तक चली सुनवाई के बादसुप्रीम कोर्ट का फैसला, अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना।
5 फरवरी 2020- राम मंदिर के लिए ट्रस्ट का गठन।
5 अगस्त 2020- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों राममंदिर निर्माण का शिलापूजन।