राहुल गांधी के खिलाफ वाराणसी में दाखिल परिवाद को न्यायालय ने किया खारिज
-लंदन में भारतीय लोकतंत्र पर दिए बयान पर मुकदमा दर्ज कराने के लिए परिवाद किया गया था दाखिल
-अदालत ने कहा राहुल गांधी का बयान असंवैधानिक नहीं
वाराणसी। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं सांसद राहुल गांधी के खिलाफ दाखिल परिवाद को एसीजेएम प्रथम व एमपी-एमएलए कोर्ट के प्रभारी उज्ज्वल उपाध्याय की अदालत ने बुधवार को सुनवाई के बाद सिरे से खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि राहुल गांधी का बयान असंवैधानिक नहीं है। भाजपा काशी क्षेत्र के विधि प्रकोष्ठ के संयोजक अधिवक्ता शशांक शेखर त्रिपाठी ने लंदन में भारत के लोकतंत्र पर दिए गए राहुल गांधी के बयान को लेकर मुकदमा दर्ज कराने के लिए परिवाद दाखिल किया था।
परिवादी शशांक शेखर के अधिवक्ताओं राजकुमार तिवारी, आनंद पाठक, अजय सिंह, चंद्रभान गिरी ने अदालत में कहा था कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के जज बिजनेस स्कूल में भारतीय एकता, अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ बयान दिया। उन्होंने आरएसएस जैसे धार्मिक व सांस्कृतिक संगठन की तुलना आतंकवादी संगठन से करके अपराध किया है। अधिवक्ताओं ने कैंट थाने में मुकदमा दर्ज कर विवेचना का आदेश दिए जाने की प्रार्थना भी की।
परिवाद के पोषणीयता के बिंदु पर सुनवाई के दौरान अधिवक्ताओं ने कहा कि राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं। उन्होंने नफरती भाषण दिया है। इस पर अदालत को सुनवाई का अधिकार है। सीआरपीसी की धारा-179 में साफ लिखा है कि मामले की सुनवाई वहीं होगी, जहां अपराध हुआ या फिर जहां प्रभावित पक्ष रहता है। अदालत ने परिवादी पक्ष कि दलीलें सुनने के बाद पत्रावली आदेश के लिए सुरक्षित रखा था। आज 8 पेज के विस्तृत आदेश में कोर्ट ने इस परिवाद पत्र खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि परिवाद के अवलोकन से साफ नहीं होता कि राहुल गांधी का बयान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करता हो। ऐसे में यह संज्ञेय अपराध नहीं है। परिवाद पत्र खारिज किया जाता है।
परिवाद खारिज होने पर परिवादी अधिवक्ता शशांक शेखर ने बताया कि हमने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए राहुल गांधी के द्वारा देश की छवि धूमिल करने के मामले में सीआरपीसी की धारा 156 (3) में मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी। एमपी/एमएलए कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए इसे पोषणीयता के आधार पर खारिज कर दिया। अब इस मामले में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं से राय ले रहे है। इस विषय पर उच्चतम न्यायालय भी जायेंगे।