लोकसभा चुनाव से पहले योगी सरकार का बड़ा दांव, 17 OBC जातियों को मिल सकता आरक्षण

लखनऊ ]। आरक्षण की आस में दशकों से मझधार में फंसी 17 अति पिछड़ी जातियों की नैया को अब ठोस किनारा मिलता नजर आ रहा है। एक तो केंद्र और उत्तर प्रदेश में डबल इंजन की सरकार के रूप में दो पतवार खेवनहार बनकर आगे आई भाजपा के हाथ में हैं और दूसरा मौसम भी अनुकूल (चुनावी) बनता जा रहा है। दो रास्ते बताए जा रहे हैं, जो नियमों के भंवर में फंसाए बिना निषाद, केवट, राजभर सहित 17 जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण दिला सकते हैं। पूरी संभावना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा उत्तराखंड की तर्ज पर 13 प्रतिशत आबादी वाली इन जातियों पर बड़ा दांव चल दे।उत्तर प्रदेश में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआ ऐसी 17 अति पिछड़ी जातियां हैं, जिन्हें संविधान में तो अनुसूचित जाति का दर्जा दिया गया, लेकिन तकनीकी व राजनीतिक उलटफेर के चलते यह अनुसूचित जाति वर्ग की सूची से बाहर हो गईं। अनुसूचित संविधान आदेश 1950 के आधार पर 1991 तक इन्हें अनुसूचित जाति का आरक्षण मिला और उसके बाद से इनका हक राजनीतक दलों के लिए एक ‘मुद्दा’ बन गया, जो चुनावों के दौरान फुटबाल की तरह राजनीतिक चौखट और कोर्ट के कठघरों से टकराती रही। यह ‘सुनिश्चित विफल’ प्रयास सिर्फ इसलिए होते रहे, क्योंकि प्रदेश में इन जातियों का लगभग 13 प्रतिशत वोट है।इन पर 2005 में तत्कालीन सपा मुखिया और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सबसे पहले दांव लगाया और इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी कर दिया। चूंकि, राज्य को किसी जाति को अनुसूचित करने का अधिकार नहीं है, इसलिए हाईकोर्ट ने उस पर रोक लगा दी। बाद में यूपी सरकार ने भी उसे वापस ले लिया।बसपा की सरकार बनने पर मायावती ने अनुसूचित जाति के आरक्षण का कोटा 21 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने की मांग के साथ केंद्र सरकार को 17 जातियों का प्रस्ताव बढ़ाया, जो आगे नहीं बढ़ा। यही दांव अखिलेश यादव ने अपनी सरकार में चलते हुए 2016 में दो अधिसूचनाएं जारी कीं। फिर उनके अनुपालन के संदर्भ में कोर्ट के निर्णय पर योगी सरकार ने 2019 में अधिसूचना जारी की। इन सभी अधिसूचनाओं को हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में रद किए जाने के बाद सवाल है कि अब भाजपा क्या करेगी?

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