राज्य सरकार ने वर्ष 2024 तक अवैध और मलिन बस्तियों को दिया ‘अभयदान’, पढ़े पूरी खबर

देहरादून, चुनावी साल में उत्तराखंड में अवैध और मलिन बस्तियों को नियमित करने के लिए सरकार ने फिर से रेड-कारपेट बिछा दिया है। सोमवार को राज्य मंत्रीमंडल की बैठक में फैसला किया गया कि अगले तीन साल तक किसी बस्ती को तोड़ा नहीं जाएगा। इस फैसले के बाद प्रदेश के 63 नगर निकायों की 582 मलिन बस्तियों के 7,71,585 निवासियों को राज्य सरकार ने वर्ष 2024 तक ‘अभयदान’ दे दिया है। इनमें 36 फीसद बस्तियां निकायों जबकि दस फीसद राज्य और केंद्र सरकार, रेलवे व वन विभाग की भूमि पर मौजूद हैं। वहीं, बाकी 44 फीसद बस्तियां निजी भूमि पर अतिक्रमण कर बनी हुई हैं।

हरित एवं सुंदर उत्तराखंड। शायद ही यह जुमला आने वाले दिनों में किसी जुबान पर सुनाई दे। वोटबैंक की राजनीति की खातिर सरकार ने अव्यवस्थित रूप से अतिक्रमण कर बसी बस्तियों के लिए जो रेड कारपेट बिछाया है, उसका सच तो यही है। गरीबों के लिए आवासीय योजनाएं लाने व उनके पुनर्वास की व्यवस्था के बजाय सरकार तो अवैध बस्तियों पर कानूनी वैधता की मुहर लगाने की तैयारी कर रही है। सरकारी भूमि व नालों पर कब्जा कर बनी अवैध बस्तियों को नियमित करने के लिए सरकार ने पहले ही कमेटी भी गठित कर दी थी। चूंकि, इस कमेटी की सिफारिश पर सरकार फिलहाल कोई निर्णय नहीं ले सकी, लिहाजा सरकार ने इस मामले को तीन साल आगे खिसकाने का कदम उठा लिया।

वोटबैंक के लिए राजनेताओं की होड़

मलिन बस्तियों के विनियमितीकरण और मालिकाना हक दिलाने के लिए राजनेताओं की होड़ किसी से छुपी नहीं। वर्ष-2017 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार भी इस हसरत के साथ विदा हो गई व मौजूदा भाजपा सरकार भी उसके ही नक्शे-कदम पर चल रही है। चार वर्ष पहले भाजपा के सत्ता में आने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा भी बस्तियों के विनियमितीकरण का फैसला लिया गया था, लेकिन तकनीकी अचडऩ में सरकार इसे आगे सरकाती रही। फिर अप्रैल में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भी इसी दिशा में आगे बढ़ाया, लेकिन कुछ कर पाने से पहले ही उन्हें रुखसत कर दिया गया। नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उसी दिशा में कदम आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। उन्होंने तो एक या दो नहीं, पूरे तीन साल तक बस्तियों को तोड़ने पर रोक लगा दी।

दून में 129 मलिन बस्तियां

राज्य बनने से पहले नगर पालिका रहते हुए दून में 75 मलिन बस्तियां चिह्नित की गई थीं। राज्य गठन के बाद दून नगर निगम के दायरे में आ गया। वर्ष 2002 में मलिन बस्तियों की संख्या 102 चिह्नित हुई और वर्ष 2008-09 में हुए सर्वे में यह आंकड़ा 129 तक जा पहुंचा। वर्तमान में अगर नजर दौड़ाएं तो यह आंकड़ा 150 तक जा पहुंचा है। यह केवल चिह्नित बस्तियों का रिकार्ड है, मगर हकीकत इससे कहीं आगे है।

मलिन बस्तियों पर कमेटी की रिपोर्ट

-2016 में प्रदेश के 63 नगर निकायों में हुए सर्वे में 582 मलिन बस्तियां पाई गई। जिनकी कुल जनसंख्या 7,71,585, जबकि इनमें मकानों की संख्या 1,53,174 बताई गई थी।

-582 में से 278 बस्तियां नगर निकाय द्वारा नोटिफाइड हैं और 62 की सूचना ही उपलब्ध नहीं है।

-37 फीसद बस्तियां नदी और नालों के किनारे बसी हुई हैं।

-44 फीसद बस्तियां निजी भूमि पर और 36 फीसद नगर निकाय की भूमि पर हैं।

-दस फीसद बस्तियां राज्य सरकार, केंद्र सरकार, रेलवे, वन विभाग की भूमि पर हैं।

-बस्तियों में 55 फीसद मकान पक्के, 29 फीसद आधे पक्के व 16 फीसद कच्चे मकान हैं।

-24 फीसद बस्तियों में शौचालय नहीं।

-41 फीसद जनसंख्या की मासिक आय तीन हजार रुपये व बाकी की इससे कम।

-38 फीसद लोग मजदूरी, 21 फीसद स्वरोजगार, 20 फीसद नौकरी करते हैं।

-प्रतिव्यक्ति मासिक आय 4311 रुपये, जबकि खर्चा 3907 रुपये है।

-छह फीसद लोग साक्षर नहीं हैं।

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