आरबीआई का फैसला, अब जनता तय करेगी कैसे होने चाहिए नोट और सिक्के

नई दिल्ली। केंद्र सरकार अब करेंसी नोटों और सिक्कों के निर्धारण में आम जनता की भागीदारी बढ़ाने के लिए और इन्हें चलन में लाने से पहले आम राय लेने का फैसला किया है। सरकार इसके लिए बड़े पैमाने पर एक सर्वे कराने जा रही है। आम जनता मानस के कराए जाने वाले इस सर्वे के आधार पर केंद्रीय बैंक आने वाले समय में देश में चलन में रहने वाले नोटों व सिक्कों के बारे में फैसला करेगा। नए फैसले में इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि नोटों व सिक्कों में इस्तेमाल होने वाले कागज व नोट से लेकर इसके मुद्रण से जुड़ी तकनीक भी भारतीय हो ताकि करेंसी प्रबंधन में देश आत्मनिर्भर बन सके। यह सर्वे अक्टूबर, 2019 से शुरू हुआ था, लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से पूरी प्रक्रिया स्थगित हो गई। 

RBI ने नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू होने के बाद से अपने करेंसी प्रबंधन में काफी बदलाव किए हैं। उस समय में प्रचलन में लाए गए 2,000 रुपए मूल्य के नोटों की छपाई बंद हो चुकी है। पहली बार 200 रुपए के नोट प्रचलन में लाए गए हैं। नोटों को भौतिक रूप से ज्यादा सुरक्षित बनाने और नकली नोटों की गुंजाइश खत्म करने के लिए नए फीचर्स पेश किए गए हैं। नोटों को प्रचलन में लाने की लागत घटाने और नक्कालों के मंसूबे विफल करने की कोशिश में सफलता मिल रही है लेकिन RBI का कहना है कि अभी सुधार की बहुत गुंजाइश है। नोटबंदी के बाद जब से नए नोट बाजार में आए हैं, तब से बैंकों में पुराने कटे-फटे नोटों की संख्या में काफी कमी आई है।

वर्ष 2017-18 (जब 100, 200 व 500 के नए फीचर्स वाले नोट जारी हुए) में आरबीआई के पास पुराने कटे-फटे 2,76,782 नोट आए थे, जिनकी संख्या वर्ष 2019-20 में घटकर 1,46,530 रह गई है। नोटों की प्रिटिंग पर वर्ष 2018-19 में 4,810.67 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, जबकि 2019-20 में यह राशि कम होकर 4,377.84 करोड़ रुपए रह गई। RBI के आंकड़ों के मुताबिक, नोटबंदी के बाद सिक्कों की सप्लाई केंद्रीय बैंक ने काफी घटा दी है। वर्ष 2017-18 में विभिन्न मूल्य वाले 585 करोड़ सिक्कों की आपूर्ति की गई थी, जिनकी संख्या वर्ष 2019-20 में घटा कर 311 करोड़ कर दी गई।  

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