शुभ-अशुभ की पहले ही सूचना दे देते हैं कौए, पहरेदारी ऐसी कि अपराधी नहीं कर पाते एंट्री
हरनौत (नालंदा) : कौआ आया है, संदेश लाया है। बैठने, मंडराने, देखने और बोलने के साथ कई संकेत लाया है। कौए के द्वारा मेहमान के आगमन के साथ शुभ-अशुभ की पूर्व सूचना देने की परंपरा बिहार के नालंदा में जीवंत है। शाम होते ही नालंदा जिले के चंडी प्रखंड की रुखाई पंचायत के हरपुर गांव में झुंड के झुंड कौए आने लगते हैं। काओं-काओं करने के दौरान इनकी आने-जाने वालों पर कड़ी नजर रहती है। इनकी पहरेदारी ऐसी है कि ग्रामीणों को याद नहीं कि आखिरी बार चोरी कब हुई थी। किसी घटना से पहले हर शाख पर बैठे कौए शोर मचाकर गांव को अलर्ट कर देते हैं। कौओं की आमद हजारों में है। कभी गिनती नहीं की गई पर ग्रामीणों का दावा है कि कौओं की संख्या एक लाख की है। कोई हरपुर को कौए की नगरी कहता है तो कोई नैहर की संज्ञा देता है। नैहर इसलिए कि यहां इन्हें ससुराल से मायके लौटी बेटियों सरीखा सुकून व अपनापन मिलता है। बच्चे हों या बड़े कोई इन्हें छेड़ता या भगाता नहीं। कौओं की बड़ी उपस्थिति हरपुर के पर्यटन का जरिया भी है। आस-पड़ोस के गांव के लोग यहां सुबह या शाम में अपने बच्चों को कौओं का झुंड दिखा कर दिल बहलाने के लिए आते हैं।गांव के चारों तरफ बड़ी संख्या में मौजूद पेड़ कौओं का बसेरा है। जाड़ा, गर्मी या बरसात किसी मौसम में ये पक्षी कभी पलायन नहीं करते। दिन में भोजन की तलाश में उत्तर दिशा में (फतुहा एवं पटना के जल्ला क्षेत्र तक) करीब 40 से 50 किलोमीटर तक उड़ान भरते हैं। फिर दाना चुगते हुए शाम में अंधेरा होने से पहले हरपुर पहुंच जाते हैं। सुबह और शाम में जाते-आते कौओं का झुंड कौतूहल व रोमांच पैदा करता है। हरपुर गांव चिरैया नदी के तट पर बसा है। इस गांव में नदी चंडी और थरथरी प्रखंड की विभाजन रेखा है। नदी किनारे बगीचे की तरह पेड़-पौधों की कतार एवं झुरमुट हैं, जो कौए को अनुकूल आवास उपलब्ध कराता है। नदी एवं आस-पास के दो दर्जन तालाबों में सालों भर पानी रहता है। जिससे तापमान शहरों की तुलना में कम रहता है।