इन पांच जगहों पर कभी भी न करें निवास, वरना भविष्य में करना पड़ेगा मुश्किलों का सामना
आचार्य चाणक्य विलक्षण प्रतिभा के धनी और असाधारण बुद्धि के स्वामी थे। उन्होंने नीति शास्त्र में समाज को उच्च बनाने के लिए कई नीतियां लिखी है। इन्हीं मे से कई नीतियां लोगों को काफी कठोर लगती हैं। लेकिन उनकी इस कठोरता में भी एक सच्चाई है। इसी क्रम में आचार्य चाणक्य ने उन पांच जगहों का जिक्र किया है जहां पर किसी भी व्यक्ति को एक पल भी नहीं रहना चाहिए।
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात् तत्र संगतिम् ॥
आचार्य चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को उस जगह बिल्कुल भी निवास नहीं करना चाहिए जहां पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो।आचार्य चाणक्य ने अपनी इस नीति में ऐसी जगहों के बारे में बताया है जहां पर किसी व्यक्ति का जीना दूभर हो सकता है।
आजीविका न मिले
कोई व्यक्ति अपने घर को इसलिए छोड़कर देश-परदेश जाता है कि उसे वहां पर कमाने का कोई साधन मिले। इसलिए किसी भी व्यक्ति को ऐसी जगह पर नहीं रहना चाहिए जहां पर कोई आजीविका का साधन यानी नौकरी, व्यापार आदि न हो। ऐसी जगह पर आप किसी तरह कुछ दिन गुजर-बसर कर सकते हैं। लेकिन एक समय के बाद आपके लिए बिना धन के ऐसी जगह रहना मुश्किल हो जाता है। इसलिए जब भी किसी जगह आप रहने जा रहे हैं तो इस बात का जरूर ध्यान रखें।
लोगों में भय
व्यक्ति को ऐसी जगह पर भी निवास नहीं करना चाहिए। जहां पर लोगों के अंदर कानून का जरा सा भी भय न हो। क्योंकि ऐसी जगह रहने से आप अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहेंगे।
उदारता
जब कोई व्यक्ति दूसरे शहर में जाता है तो वह नए लोगों से मित्रता, व्यवहार बनाता है। लेकिन अगर आप ऐसी जगह पर रहने चले जाते हैं जहां पर लोगों के मन में जरा सी भी उदारता नहीं है तो वह आपके सुख-दुख के कभी भी साथी नहीं बन पाते हैं।
लज्जा
आचार्य चाणक्य के अनुसार, जिस जगह पर लोग लोक-लाज से रहना पसंद करते हैं। वहां का पूरा समाज संस्कार से भरपूर होता है। कहा जाता है कि जिस जगह का समाज एक मर्यादा में रहता है वहां के लोगों को विकास जरूर होता है। इसलिए हमेशा लज्जा वाले समाज में रहना चाहिए।
दान
आचार्य चाणक्य के अनुसार, ऐसी जगह पर नहीं रहने चाहिए जहां पर लोगों के मन में दान देने की प्रवृत्ति न हो। क्योंकि जब व्यक्ति के अंदर ऐसी आदत होती है तो वह हमेशा दूसरों के सुख-दुख में खड़ा रहता है।