महिला दिवस विशेष… स्त्री को ना बनाएं मानसिक प्रताड़ना का शिकार
21वीं शताब्दी में हमारा देश कहां से कहां पहुंच गया लेकिन फिर भी पुरुषों की मानसिकता नहीं बदली और महिलाओं प्रतिदिन हो रही हैं मानसिक प्रताड़ना का शिकार!दुनिया की आधी आबादी महिलाओं की है. उन्हें पूरा सम्मान दिए जाने की जरूरत है. समाज को बार बार इस बात को समझाने की जरूरत है कि महिलाओं की कितनी हिस्सेदारी होनी चाहिए। एक आदमी जब पैदा होता है तो उस समय उसकी जीवन की ऊर्जा बड़ी संवेदनशील होती है. ऐसे में उसे एक स्त्री ही संभालती है, उसकी मां. जब तक वह इतना बड़ा नहीं हो जाता कि बाहर के संसार में अपने दोस्त बना सके तो वहां भी एक लड़की ही मिलती है जो उसकी देखरेख करती है और वह है उसकी बहन। फिर जब वह स्कूल जाता है, तो वहां फिर एक महिला है जो उसकी सहायता करती है, चीजों को समझने में, उसे सहारा देती है, उसकी कमजोरियों को दूर करने में और उसको एक अच्छा इंसान बनाने में, वह है अध्यापिका. वह और बड़ा होता है और जीवन से उसका संघर्ष शुरू होता है. जब भी वो संघर्ष में कमजोर हो जाता है तो एक लड़की ही उसको साहस देती है वह है उसकी प्रेमिका। जब आदमी को जरूरत होती है साथ की, अपनी अभिव्यक्ति के लिए, अपना दुख और सुख बांटने के लिए, फिर एक लड़की वहां होती है और वह है उसकी पत्नी जीवन के संघर्ष और रोज की मुश्किलों का सामना करते करते आदमी कठोर होने लगता है तब उसे निर्मल बनाने वाली भी एक लड़की ही होती है और वो है उसकी बेटी. और जब आदमी की जीवन यात्रा खत्म होती है, तब फिर उसका अंतिम मिलन होता है मातृभूमि से। हर महिला को सम्मान दिया जाना चाहिए, जो हर पल आपके साथ किसी न किसी रूप में उपस्थित है. और महिलाओं को गर्व होना चाहिए, अपने महिला होने पर।
मैं अंबर, मैं सितार हूं,
मैं ही चांद और तारा हूं,
मैं धरती, मैं नजारा हूं,
मैं ही जल की धारा हूं,
मैं हवा, मैं फिजा हूं,
मैं ही मौसम का इशारा हूं,
मैं फूल, मैं ही खुशबू हूं,
मैं ही जन्नत का नजारा हूं..