माफिया अतीक की पत्नी शाइस्ता ने चुनाव मैदान से हटने का किया फैसला

प्रयागराज। शहर पश्चिम विधानसभा सीट से पहली बार माफिया अतीक अहमद और उसके परिवार के किसी सदस्य का मैदान में न उतरना सियासत के गलियारे में चर्चा का विषय बन गया है। पहले माफिया की पत्नी शाइस्ता परवीन के एआइएमआइएम के टिकट पर मैदान में उतरने की बात कही जा रही थी। अब चुनाव न लड़ने से इसके तमाम मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि, माफिया से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि छोटे पुत्र अली के नामजद होने के बाद ही शाइस्ता ने चुनाव न लड़ने का मन बना लिया था, क्योंकि चुनाव की बागडोर संभालने के लिए कोई नहीं था।शहर पश्चिमी माफिया अतीक अहमद का गढ़ माना जाता है। 1989 में अतीक यहां से निर्दलीय चुनाव जीते। इसके बाद वह सपा, अपना दल के टिकट से मैदान में आते रहे और जीतते रहे। फूलपुर से सांसद बनने के बाद इस सीट पर भाई अशरफ को चुनाव लड़वाया। वर्ष 1989 से 2017 तक माफिया अतीक अहमद और उसके परिवार के लोग यहां से चुनाव लड़ते रहे। लेकिन इस बार के चुनाव में माफिया अतीक और उसके परिवार का कोई सदस्य मैदान में नहीं उतरा। जबकि पिछले वर्ष अतीक की बीवी शाइस्ता परवीन ने आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) की सदस्यता ली थी। अटाला में आयोजित जनसभा में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने शाइस्ता परवीन को शहर पश्चिमी से उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। हालांकि, एआइएमआइएम ने प्रत्याशियों की जो सूची जारी की, उसमें शाइस्ता परवीन का नाम घोषित नहीं किया। आठ फरवरी को नामांकन की तिथि बीतने के बाद यह साफ हो गया कि माफिया और उसके परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ेगा। इसे लेकर सियासी गलियारों में हलचल भी पैदा हो गई। किसी की समझ में नहीं आया कि आखिर माफिया अतीक ने अपनी इस सीट को किन कारणों से छोड़ दिया। माफिया से जुड़े करीबी कहते हैं कि पति अतीक और देवर अशरफ जेल में हैं। बेटे उमर और अली फरार हैं। हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि छोटा पुत्र अली जब तक साथ में था, तब तक शाइस्ता परवीन के हौसले बुलंद थे। लेकिन पिछले वर्ष दिसंबर के अंतिम सप्ताह में अली के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने पर जब वह फरार हुआ तो शाइस्ता परेशान हो गईं। उन्होंने चुनाव न लड़ने का मन बना लिया और इसलिए नामांकन नहीं किया। वहीं, चर्चा यह भी है कि अप्रत्यक्ष रूप से समाजवादी पार्टी को समर्थन देने के लिए माफिया और उसके परिवार ने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है।

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