क्या खतरे में प्रधानमंत्री इमरान की कुर्सी! पाक फौज के पास क्या है विकल्प
पाकिस्तान खुफिया एजेंसी (आइएसआइ) चीफ की नियुक्ति मामले का विवाद अब एक नाटकीय मोड़ पर पहुंच गया है। अगर यह मामला और आगे बढ़ता है तो पाकिस्तान में एक बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। इस विवाद की आंच वहां की लोकतांत्रिक सरकार तक पहुंच सकती है। यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी फौज संवैधानिक प्रावधानों का अतिक्रमण कर रही है।
उधर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लगातार आइएसआइ प्रमुख की नियुक्त मामले में कानूनी प्रावधानों का जिक्र कर रहे हैं। आखिर क्या है कानूनी प्रावधान ? आखिर इस सियासी जंग की अंतिम परिणति क्या होगी ? क्या पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार असुरक्षित है ? क्या इमरान खान प्रधानमंत्री पद से हट सकते हैं ? आइए जानते हैं इन सब मामलों में क्या है प्रो. हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख) की राय।
क्या पाकिस्तान में इमरान खान की कुर्सी खतरे में है ?
देखिए, पाकिस्तान में जब-जब सरकार और फौज के बीच टकराव हुआ है, तब-तब सेना ने हुकूमत पर कब्जा किया है। इसलिए अगर विवाद लंबा खिंचता है तो यह इमरान और लोकतांत्रिक सरकार के हित में नहीं है। हमें तो अच्छे संकेत नहीं दिख रहे हैं। पाकिस्तान फौज को इस बात का इल्म है कि इमरान खान की लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है। वर्ष 2018 में सत्ता में आने के बाद इमरान करीब-करीब हर मोर्चे पर विफल रहे हैं। ऐसे में सेना इस मौके का फायदा उठा सकती है।
सैन्य शासन के लिए हालात बेहतर क्यों ?
बिल्कुल, प्रधानमंत्री इमरान देश की आंतरिक और वाह्य समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रहे हैं। एक तरह से वह दोनों मोर्चे पर विफल रहे हैं। पाकिस्तान में कोरोना महामारी से निपटने में इमरान सरकार की विफलता के साथ कई ऐसे कारण हैं, जो उनके ग्राफ को नीचे गिराते हैं। कूटनीतिक मोर्चे पर तो वह पूरी तरह से विफल रहे हैं। पुलवामा आतंकी हमला हो या अनुच्छेद 370 का मसला, भारत ने पाकिस्तान को कूटनीतिक मोर्चे पर मात दी है। इमरान के कार्यकाल में अमेरिका से रिश्ते एकदम नीचे चले गए हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद देश की आर्थिक व्यवस्था बद से बदतर हो गई है। बेरोजगारी और महंगाई चरम पर है। सेना के लिए यह एक अनुकूल स्थिति है। इसलिए यह संदेह करना लाजमी है।
क्या कुरैशी पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बन सकते हैं ?
देखिए, पाकिस्तान मीडिया में यह बात जोर पकड़ रही है कि शाह महमूद कुरैशी देश के नए प्रधानमंत्री बन सकते हैं। दरअसल, फौज और विपक्ष में कुरैशी की छवि काफी अच्छी है। सेना और विपक्ष में वह काफी लोकप्रिय हैं। पाकिस्तान के सियासी हलकों में हमेशा से ये कहा जाता रहा है कि कुरैशी की इच्छा पीएम बनने की रही है। हालांकि, इसके पूर्व भी वह पीएम की कुर्सी तक पहुंचने में दो मौके चूक चूके हैं। एक बार यूसुफ रजा गिलानी तो दूसरी बार इमरान खान उनकी राह में बाधा बने थे। खास बात यह है कि कुरैशी और फौज के बीच गहरे और अच्छे ताल्लुकात हैं। इमरान खान को तो पूरा विपक्ष इलेक्टेड के बजाय सिलेक्टेड प्रधानमंत्री कहता है।
पाकिस्तान की सियासत में सेना के पास क्या विकल्प हो सकते हैं ?
देखिए, मेरी निगाह में अगर यह विवाद और गहराया तो सेना के पास दो विकल्प हो सकते हैं। पहला, फौज इमरान सरकार को बर्खास्त करके सत्ता पर काबिज हो जाए। दूसरा, फौज इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से हटाकर अपने किसी खास को इस पर बैठा सकती है। उन्होंने कहा कि मेरी राय में ऐसा हो सकता है कि विवाद गहराने की स्थिति में इमरान खान को हटाया जा सकता है। फिलहाल अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति नहीं है। पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है।
बाजवा और इमरान के मतभेद को आप किस रूप में देखते हैं ?
पाकिस्तान में निर्वाचित सरकार और फौज के बीच मतभेद का यह सिलसिला नया नहीं है। पाकिस्तान में सत्ता की असल चाबी सेना के पास ही होती है। इतिहास गवाह है कि अगर निर्वाचित सरकार ने फौज से पंगा लिया तो उसको भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इसके पूर्व नवाज शरीफ, बेनजीर भुट्टो, जुल्फिकार अली भुट्टो को सेना से पंगा लेने का अंजाम भुगतना पड़ा था। सेना और सरकार के बीच यह संघर्ष एक संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा है। यह पाकिस्तानी लोकतंत्र के लिए कतई शुभ नहीं है।
भारत के लिए कितना शुभ है फौज का शासन ?
देखएि, पाकिस्तान में फौजी हुकूमत भारत के लिए कतई शुभ नहीं रहा है। करगिल युद्ध के नायक परवेज मुसर्रफ रहे हैं। उन्होंने पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार को अपदस्थ किया और हुकूमत पर कब्जा कर लिया। अगर आप गौर करे तो फौज की सत्ता आते ही कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाओं में इजाफा होता है। फौजी हुकूमत का एक सूत्रीय कार्यक्रम भारत के साथ तनाव कायम करना है। फौजी हुकूमत के वक्त दोनों देशों के रिश्तों में तनाव चरम पर पहुंच जाता है। भारत की लोकतांत्रिक सरकार फौज हुकूमत के साथ सहज संबंध कायम करने में हिचकती है।