देश में किडनी फेल होने या क्रोनिक किडनी डिजीज के बढ़ रहे मामले
मेरठ। किडनी ट्रांसप्लांट मेडिकल फील्ड में एक बड़ा ही नाजुक और रिस्की टास्क माना जाता है. इसी मुश्किल को आसान बनाया है दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स अस्पताल ने मैक्स अस्पताल में मेरठ के रहने वाले विजय पाल 52 का सफल लेप्रोस्कॉपिक किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है. विजय पाल का ये ऑपरेशन इसलिए भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उन्हें पहले से ही हाइपरटेंशन और हाइपोथायरायडिज्म की समस्या थी. विजय पाल की किडनी की समस्या एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी थी, वो क्रोनिक किडनी डिसीज पीड़ित थे और उन्हें तुरंत किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत थी. विजय पाल को अन्य बीमारियां होने के चलते कई अस्पतालों ने ट्रांसप्लांट के लिए मना कर दिया था.
इसके बाद विजय पाल बहुत उम्मीदों के साथ दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स अस्पताल पहुंचे. यहां उन्हें नेफ्रोलॉजी के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ वरुण वर्मा ने देखा और किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया. मरीज और डोनर दोनों को भर्ती किया गया और सभी जरूरी टेस्ट कराए गए. विजय पाल की पत्नी का मैच मिल गया और वो अपने पति के लिए किडनी डोनेट करने को राजी हो गईं.
विजय पाल को सीओपीडी यानी सांस की समस्या, आरवीएच यानी चक्कर आना, ग्लोमेरूलोन्फ्राइटिस यानी रंगीन यूरिन आना और गंभीर एमआर से जुड़ी अलग-अलग दिक्कतें भी थीं. इन बीमारियों के चलते ये केस बहुत ही चुनौतीपूर्ण था, जिसकी वजह से कई अस्पतालों ने ट्रांसप्लांट के लिए मना कर दिया था.
डॉ वरुण वर्मा ने बताया, डोनर की उम्र का ध्यान रखते हुए पूरी प्रक्रिया को बहुत ही बारीकी से देखा गया और टीम ने जनरल एनीस्थीसिया के साथ इस लेप्रोस्कोपिक किडनी ट्रांसप्लांट को अंजाम देने का फैसला किया. ट्रांसप्लांट से पहले की तमाम औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद, कार्डियोलॉजी और साइकेट्री डिपार्टमेंट से ग्रीन सिग्नल लिया गया. इसके बाद किडनी ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक पूरा किया गया. इसी तरह डोनर को भी जनरल एनीस्थीसिया के साथ लेप्रोस्कोपी की मदद से ऑपरेट किया गया. सर्जरी के बाद में उन्हें कोई समस्या नहीं हुई. दूसरी तरफ विजय पाल ने बहुत ही सही रिकवरी की, यूरिन अच्छे से पास हुआ, क्रिएटनिन लेवल भी तेजी से नीचे आ गया और मरीज को स्थिर हालत में डिस्चार्ज कर दिया गया.
पिछले कुछ सालों में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए नई-नई तकनीक आई हैं. लेप्रोस्कोप भी एक ऐसा उपकरण है, जिसके जरिए किडनी ट्रांसप्लांटेशन बहुद ज्यादा फायदेमंद साबित हुआ और इसके चलते मरीज की रिकवरी भी तुरंत हो जाती है. साथ ही दर्द कम होता है और छोटा-सा जख्म होता है जो कि बहुत जल्दी भर जाता है. किडनी ट्रांसप्लांट के पुराने तरीके की बात करें तो उसमें मरीज के शरीर में बहुत बड़े एरिया में चीर-काट की जाती थी. जबकि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में बहुत ही छोटा-सा कट लगाया जाता है और इसमें किसी मसल्स को काटना नहीं पड़ता. यही वजह है कि सर्जरी के दौरान खून बहुत कम बहता है, साथ ही किसी मानवीय गलती के चांस भी इसमें काफी कम रहते हैं.
इन कारणों से बढ़ रही किडनी की समस्याएं
देश में किडनी फेल होने या क्रोनिक किडनी डिजीज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. डायबिटीज, अनियंत्रित हाइपरटेंशन, जैनेटिक समस्या, ऑटोइम्यून डिजीज, नशा या शराब समेत यूरिन से जुड़े इंफेक्शन जैसे कई कारण होते हैं जिससे किडनी फेल होने जैसी नौबत आ जाती है. इस तरह के मामलों में जीवन बचाने के लिए किडनी ट्रांसप्लांट करना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है. लिहाजा, किडनी की बीमारी से जूझ रहे मरीजों और उनके परिजनों के लिए ट्रांसप्लांट से जुड़ी बातों और इसकी प्रक्रिया को समझना बहुत आवश्यक है.
मैक्स अस्पताल पटपड़गंज में नेफ्रोलॉजी के एसोसिएट डायरेक्ट डॉक्टर वरुण वर्मा ने बताया, आजकल पूरी दुनिया में लेप्रोस्कोपी जैसी उन्नत तकनीक से सर्जरी की जा रही हैं. हमें ये समझना होगा कि किडनी डोनेट करने से शारीरिक क्षमताओं पर असर नहीं पड़ता है, न ही डोनर की जिंदगी को इससे नुकसान पहुंचता है. हम डोनर की किडनी भी लेप्रोस्कोपिक के जरिए ही निकालते हैं ताकि उन्हें कम से कम समस्या हो.लेप्रोस्कोप एक उपकरण होता है, जिसमें कैमरा लगा होता है. बॉडी में बहुत छोटा-सा कट लगाकर इसके जरिए शरीर के अंदर मौजूद अंग को बहुत ही बड़े साइज में देख लिया जाता है और ऑपरेशन किया जाता है. इससे खून बहुत कम मात्रा में निकलता है, साथ ही मरीज की रिकवरी बहुत जल्द हो जाती है और वो बेहद कम समय में अस्पताल से डिस्चार्ज होकर अपने परिवार के बीच घर चले जाते हैं.