मुफ्त उपहार बांटने की रवायत को बढ़ावा देने वाले दलों के खिलाफ याचिका
सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया। पूरा मामला एक याचिका से जुड़ा है जिसमें चुनाव से पहले पार्टियों द्वारा मुफ्त उपहार बांटने के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने एक याचिका दायर की जिसमें चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त का वादा करने या वितरित करने वाले दलों की मान्यता को रद्द किया जाए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र एवं निर्वाचन आयोग से चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है।भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि यह निस्संदेह एक गंभीर का मुद्दा है। हम जानना चाहते हैं कि इसे कैसे नियंत्रित किया जाए। नि:संदेह यह एक गंभीर मुद्दा है। मुफ्त बजट नियमित बजट से परे है, भले ही यह एक भ्रष्ट प्रथा नहीं है, लेकिन कभी-कभी जैसा कि एससी द्वारा देखा गया है कि यह कुछ पार्टियों आदि के लिए समान अवसर नहीं है। बेंच ने सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले का भी उल्लेख किया, जहां कोर्ट ने कहा कि चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को प्रतिनिधित्व की धारा 123 के तहत ‘भ्रष्ट अभ्यास’ के रूप में नहीं माना जा सकता है। लोक अधिनियम, 1951 ने चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिए राजनीतिक दलों के परामर्श से चुनाव घोषणापत्र की सामग्री पर दिशानिर्देश तैयार करने और इसे आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) में शामिल करने का निर्देश दिया था।सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में एक हलफनामा दाखिल करना चाहिए और दिशा-निर्देशों के साथ-साथ कुछ मंजूरी भी जारी करने की जरूरत है। सिंह ने कहा कि कृपया देखें कि आखिरकार किसका पैसा देने का वादा किया गया है? यह लोगों का पैसा है। कुछ राज्यों पर प्रति व्यक्ति 3 लाख से अधिक का बोझ है, और अभी भी मुफ्त की पेशकश की जा रही है। कोर्ट ने उन्हें दिशानिर्देश तैयार करने के लिए कहा था, लेकिन बिना किसी के दिशानिर्देश पेशकश किए जा रहे हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सवाल किया कि जब तमाम राजनैतिक दल ऐसे ही फ्री गिफ्ट देने का वायदा कर रहे हैं, तब आपने सिर्फ दो ही पार्टियों का जिक्र याचिका में क्यों किया? बाकी का जिक्र क्यों नहीं किया गया? बेंच ने बताया कि कैसे याचिकाकर्ता ने याचिका में चुनिंदा पार्टियों और राज्यों का नाम लिया था। सीजेआई ने कहा, आपने हलफनामे में केवल दो का नाम लिया है। न्यायमूर्ति कोहली ने टिप्पणी की, आप अपने दृष्टिकोण में चयनात्मक रहे हैं।