महाभारत से शुरू हुई थी श्राद्ध करने की परंपरा

पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। पितृपक्ष 25 सितंबर तक चलेगा। क्या आपको पता है कि पितृपक्ष और श्राद्ध कर्म का संबंध महाभारत काल से है। पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।क्या आप जानते हैं कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म की शुरुआत महाभारत काल से चली आ रही है। इसके बारे में कुछ लोग ही जानते हैं। आइए हम विस्तार से इसके बारे में बताते हैं। पंडित शिवकुमार शास्त्री के मुताबिक, श्राद्ध कर्म की जानकारी भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को दी थी। गरुड़ पुराण में वर्णन है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था।भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था। दरअसल, अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था। इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा कि निमि आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है।
चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था। उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किए और उसके बाद से सारे ऋषि-मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिया। युधिष्ठिर ने भी कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका श्राद्ध किया था।

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