KGMU में मरीजों को लगाया फ्रेश जबड़ा:

ब्लैक फंगस से अपने दांत और जबड़े गंवाने वाले मरीजों के लिए वरदान

लखनऊ। ब्लैक फंगस के इलाज के दौरान अपना जबड़ा और दांत गंवाने वाले मरीजों के लिए केजीएमयू डेंटल विभाग के प्रास्थोडांटिक्स डिपार्टमेंट ने कमाल कर दिखाया है। ऐसे मरीजों के इलाज के लिए यहां के डॉक्टरों की टीम ने जबड़े और दांत लगाने का काम शुरू किया है।8 अलग-अलग डॉक्टरों की टीम ने 60 से ज्यादा मरीजों का बेहतर इलाज कर उनको खाना खाने और बोलने के लायक बना दिया है। कोविड की सेकंड वेव के बाद मरीजों में ब्लैक फंगस की समस्या बढ़ गई थी। उस दौरान फंगस आंख के साथ जबड़े को भी नुकसान पहुंचाने लगा था। परिणाम यह हुआ कि समय से पहले बहुत से लोगों के दांत झड़ गए। डेंटल विभाग के डॉक्टर सौम्येन्द्र विक्रम सिंह का कहना है कि कोविड के बाद शरीर के लड़ने की क्षमता कमजोर होने की वजह से यह समस्या आई।
यूपी में सरकारी विभागों में यह इलाज सबसे पहले मेडिकल कॉलेज में शुरू हुआ है। डॉक्टरों का कहना है कि अगर कहीं प्राइवेट में यह इलाज चल भी रहा होगा तो वहां 2 से 3 लाख रुपए तक का खर्च है लेकिन यहां अधिकतम 30 हजार में इलाज हो रहा है।
ब्लैक फंगस के मरीजो की जान बचाने के लिए कई बार ऊपर और नीचे के जबड़े को काट कर निकाल दिया गया था। इसकी वजह से मरीज को दूसरी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यह समस्या शुगर और एस्टोरायट वाले मरीजों में ज्यादा थी। डॉक्टर विभाग में ही जबड़ा तैयार करते हैं और उसको मरीज को लगा देते हैं।
ब्लैक फंगस के दौरान शरीर के अंदर ब्लड सप्लाई ठीक से न होने से फंगस का संक्रमण आंख के ऊपर या नीचे दोनों हिस्से में फैल जाता है। यह एक तरह के ट्यूमर की तरह होता है। यह धीरे – धीरे शरीर के सेल्स को खत्म कर देता है। ऐसे में सर्जन उसको काट के निकाल देते थे, जिससे कि ज्यादा नुकसान न हो सके। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों का कहना है कि उस समय इसके अलावा कोई चारा नहीं था।
उस समय तो मरीज की जान बच जाती थी लेकिन बाद में उसको खाने से लेकर बोलने तक में दिक्कत आती थी। उसका चेहरा खराब हो जाता था। ऐसे में लोगों ने खुद को घर के अंदर बंद करना शुरू कर दिया। मेडिकल कॉलेज डेंटल विभाग की टीम ने इस पर रिसर्च शुरू किया।

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